गिलोय के डेंगू में फायदे

  

गिलोय के डेंगू में फायदे

यह संपूर्ण भारतवर्ष में सर्वत्र पैदा होने वाली बेल (लता) है।अनेक रोगों से रक्षा करने वाली गिलोय जीवनीशक्ति को बढ़ाने एवं संरक्षित करने वाली निरापद प्राकृतिक एंटिबायोटिक औषधि है। गिलोय टी.बी.,कैंसर, टाइफॉइड एवं सभी प्रकार के ज्वरों में भी उपयोगी है। इसका प्रभाव अमृततुल्य होने से अमृता' भी कहा जाता है। यह एक ऐसी औषधि है, जो प्रत्येक प्रकृति के मनुष्य को दी जा सकती है। गिलोय के प्रचलित नाम गुड़ची, अमृता, गली, गिल गुड़बेल, मधुपर्णी आदि हैं। नीम के पेड़ पर चढ़ी  इसकी लता बेहद प्रभावशाली मानी गई है। गिलोय जिस पेड़ पर चढ़ती है उसके गुण उसमें आ जाते हैं गिलोय वृद्धावस्था और कमजोरी के लिए उपयोगी है।

गिलोय की बेल  उँगली के बराबर मोटी तथा सफेद -धूसर रंग की होती है।  इसकी बेल जितनी पुरानी हो, उतनी ही उपयोगी होती है। गिलोय डेंगू बुखार में भी लाभकारी होती है 

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    गिलोय के औषधीय गुण धर्म-

    बलकारक रक्तशोधक, मूत्रल, पित्तशामक, ज्वर एवं त्रिदोषनाशक है। रक्तपित्त, वातरक्त तथा पित्त दोषजन्य रोगों को नष्ट करने में सक्षम है। पीलिया, मधुमेह, क्षय रोग, टाइफॉइड, कैंसर, भस्मक रोग, हृदय रोग, प्रमेह, सुजाक, कुष्ठ, मिल चर्म रोग, बवासीर, हाथीपाँव, खाँसी, कृमि, अम्लता ग्रहणी विकार दूर करने वाली औषधि है।


    गिलोय के प्रयोग के लिए मात्रा-

    हरी-ताजी गिलोय का रस-

    10 मि.ली. से 20 मि.ली.

    गिलोय का चूर्ण-4 से 6 ग्राम तक

    गिलोय का सत्त्व-1/2 (आधा) ग्राम में = से 3 ग्राम



    गिलोय के साथ अनुपान-

    वात संबंधी रोगों में घृत के साथ,

    पित्त संबंधी रोगों में मिसरी के साथ तथा कफ संबंधी

    रोगों में शहद के साथ प्रभावकारी होती है।आमवात में गिलोय के क्वाथ के साथ सोंठ का चूर्ण मिलाकर प्रयोग किया जाता है।


    गिलोय का विभिन्न रोगों में प्रयोग:-

    सभी ज्वरों में

     प्राकृतिक एंटिबायोटिक औषधि के रूप में प्रयोग की जाती है ।बार-बार आने वाले जीर्ण ज्वर, मोतीझिरा (टाइफॉइड), डेंगू इत्यादि में गिलोय बिना कमजोरी के रोग निवारण करती है।

    गिलोय के साथ धनिया, नीम की छाल का आंतरिक भाग, कमल की नाल और लाल चंदन लेकर क्वाथ बनाकर दिन में 2 बार सेवन कराते हैं। ज्वर के बाद की निर्बलता को दूर करने के लिए गिलोय और सोंठ, सारिवा का फांट 20 मि.ली. की मात्रा में दिन में 3 बार देना चाहिए या अमृतारिष्ट' (आयुर्वेदिक मेडिकल स्टोर्स पर उपलब्ध) का उपयोग करें।

    गिलोय का रस,मधु मिलाकर दिन में 3 बार देने से फीवर में लाभ होता है।

    पागलपन, दिमागी असंतुलन में-

    पित्त के प्रकोप से पागलपन के लक्षण हों, अधिक क्रोध, निरर्थक बोलना, अनिद्रा, लाल आँखें इत्यादि लक्षण

    होने पर गिलोय और ब्राह्मी या शंखपुष्पी को मिलाकर तैयार किया फांट मिसरी या खाँड मिलाकर दिन में 3 बार पिलाने से 20 दिन में पूरा लाभ होता है।

    प्रमेह में-

    साधारण विकार में गिलोय का रस शहद के साथ दिन में 2 बार सेवन करने से लाभ होता है।

    शीतपित्त (अर्टीकेरिया) में-

    गिलोय के रस में बावची (बाकुची) चूर्ण मिलाकर लेप करने से या मालिश करने से लाभ होता है।

    आँखों के रोगों में- 

    पित्त जन्य दोषो के कारण आंखों में लाली तथा नेत्र दृष्टि कमजोर हो तो गिलोय का रस 10 मिलीलीटर शहद या मिश्री के साथ चटाए।

    मेद (मोटापा) रोग में-

    गिलोय और त्रिफला का क्वाथ बनाकर 1 ग्राम शिलाजीत तथा 1 रत्ती लोहभस्म : मिलाकर प्रतिदिन सेवन करने से यथेष्ट लाभ होता है।

    मूत्रकृच्छ और सुजाक में-

    (1) गिलोय, आँवला, गोक्षरू (गोखरू), अश्वगंधा का क्वाथ दरद

    सहित वातज मूत्रकृच्छ्र में 20 मि.ली. दिन में तीन 1 बार सेवन कराने से लाभ होता है।

    (2) ताजी गिलोय 50 ग्राम पीसकर 250 मि.ली. ।

    पानी में छानकर कलमी शोरा, जवाखार, शीतलचीनी का चूर्ण 5-5 ग्राम तथा 50 ग्राम चीनी मिलाकर, छानकर 4-4 घंटे के अंतर से 4 बार पिलाने से सुजाक के सारे कष्ट दूर होते हैं। यह प्रयोग 40 दिन तक लगातार करने से ही पूर्ण लाभ होता है।

    तिल्ली एवं यकृत (लिवर) की कमजोरीमें-

    लिवर और तिल्ली की खराबी की वजह से पीलिया, कामला, जलोदर इत्यादि जितने भी रोग खड़े होते हैं, उन सबको दूर करने में गिलोय की भूमिका बेहद चमत्कारिक है। टाइफॉइड  में भी इसका प्रयोग बड़ा उपयोगी होता है।

    भूख न लगना, चेहरे पर पीलापन, कमजोरी, वजन की कमी इत्यादि में एलोपैथी की हानिकारक दवाएँ खाकर निराश होने वाले गिलोय का सेवन करके आश्चर्यजनक लाभ पा सकते हैं।

    नीम के पेड़ के ऊपर चढ़ी हुई गिलोय 20 ग्राम, अजमोद 2 ग्राम, पीपर 2 नग, नीम की पत्तियाँ 20 नग इन सबको मिलाकर कूट-पीसकर 250 मि.ली. पानी में मिट्टी के बरतन में भिगोकर रख दें। प्रात:काल ठंढाई की तरह पीसकर प्रतिदिन छानकर पी लें। इस प्रकार एक माह तक सेवन करें।

    रक्त विकारों में 

    विभिन्न चर्मरोग-खाज,

    खुजली, वातरक्त इत्यादि रोगों में शुद्ध गूगल के साथ

    देने से अत्यंत लाभ मिलता है

    पीलिया में-

    गिलोय के पते का रस मट्ठे में मिलाकर पीने से पीलिया दूर होता है।

    श्वेतप्रदर में-

    गिलोय को शतावरी के साथ पानी में औटाकर काढ़ा बनाकर नित्य पिलाने से श्वेत प्रदर दूर होता है।

    गठिया एवं मूत्र विकारों में-

    गिलोय का काढ़ा बनाकर पिलाने से पुरानी गठिया और पेशाब संबंधी बीमारियाँ दूर होती है

    खाँसी, अरुचि, भूख की कमी में-

    गिलोय के सत्व में पीपली  चूर्ण और मथु मिलाकर चाटने

    से तिल्ली और यकृत संबंधी रोग दूर होते है,भूख खुलकर लगती है। खाँसी में लाभ होता है। क्षय रोग(टी.बी.) में-गिलोय सत्व के साथ बंशलोचन और इलायची को शहद के साथ चटाने से

    क्षयरोग में बहुत लाभ होता है।

    गिलोय सत्त्व बनाने की विधि-

    नीम के पेड़ पर चढ़ी हुई गिलोय की बेल (लता) लाकर छोटे

    छोटे टुकड़े कर सिलबट्टे पर पीसकर

    मिट्टी के बरतन में पानी भरकर उसके अंदर डाल दें। 5-6 घंटे बाद हाथों से मसलकर-छानकर, पानी को 4-5 घंटे पड़ा रहने दें। जब गिलोय सत्व बरतन की पेंदी में जमा हो जाए तो धीरे-धीरे पानी को निथार कर निकाल दें, जो नीचे सफेद रंग का सत्त्व जमा हो उसे  निकालकर धूप में सुखा लें। यही गिलोय सत्त्व है, जो अनेक रोगों के काम आता है


    डेंगू में प्लेटलेट्स घटने पर-


    आधुनिक खोज में यह सत्यता उजागर हुई है कि गिलोय के पत्ते का रस, क्वाथ या गिलोय चूर्ण या गिलोय की बेल का डंठल कूटकर, काढ़ा बनाकर पिलाने से प्लेटलेट्स की संख्या बढ़ जाती है

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