मूली नहीं है मामूली पेट के लिए फायदेमंद होती है मूली

मूली नहीं है मामूली पेट के लिए फायदेमंद होती है मूली


मूली (Radish) को प्राय: मूला, मूरी आदि नाम से भी जानते हैं। मूली सब्जी एवं सलाद के रूप में हमारे देश में उपयोग में लायी जाती हैं।

 आयुर्वेद के अनुसार कच्ची मूली त्रिदोषनाशक, कब्ज, बवासीर, दाद, पीनस, खाँसी, मूत्र संबंधी विकारो को दूर करती है।


    कब्ज और अपच (Indigestion) मे मूली खाने के फायदे


     यह पाचनशक्ति बढ़ाती है, सभी प्रकार की सूजन को मिटाती है। यह पथरीनाशक होती है। इसके ताजे पत्तों का रस मूत्रल (diuretics) रक्तशोधक( ब्लड प्यूरीफायर) और रक्तपित्तनाशक होता है। 

    हिचकी(hiccup)एवं हैजा रोग एवं हृदय रोग में मूली हितप्रद है। फेफड़ों को स्वस्थ बनाती है। कच्ची मूली त्रिदोषनाशक होती है।

     घृत(ghee) के साथ पकाई हुई मूली त्रिदोषहर होती है। मूली की फलियाँ और बीज उष्ण या गरम होती हैं और वायु(gas) को दूर करती हैं। 

    मूली के बीज मूत्रल और पथरीनाशक होते हैं। पकी हुई पुरानी मूली चरपरी, उष्णबीर्य, दाह एवं पित्त विकारों को पैदा करती है, त्रिदोषकारक होती है।

    मूली का नियमित रूप सेवन करने से मंदाग्नि(indigestion) दूर होती है। कब्ज, गैस एवं बवासीर से मुक्ति मिलती है। यकृत (लिवर) स्वस्थ होता है। रक्त की कमी दूर होती है।

     स्मरण रहे कि कच्ची मूली का सेवन रात्रि के समय नहीं करना चाहिए। रात्रि में कमजोर पाचनशक्ति बालों की जठराग्नि के अधिक मंद होने (poor digestion) से गैस विकार आदि कठिनाई हो सकती है। अतः यह ध्यान रखना चाहिए कि दिन में ही प्रयोग करने से पाचनशक्ति बढ़ाती है।

     तेल या घी से पराठें बनाकर सेवन करना स्वाद के लिए अच्छा हो सकता है, परंतु स्वास्थ्य के लिए अच्छा नहीं है। मूली के पत्ते पीसकर तथा मूली को कद्दूकस करके आटा में मिलाकर आटा गूंधकर मूली की स्वादिष्ट रोटी बनाई जाती है।

    यह आरोग्यकारी रोटी सेवन करने से कब्ज एवं बबासीर जैसे रोगों से बचाव होता है। तथा यकृत (लिवर) की ताकत बढ़ती है। मूली को उसके पत्तों के साथ सेवन करने से मूली का पाचन अच्छी तरह होता है। मूली नेचर का उत्तम वरदान है यह कई प्रकार से उपयोगी है। तो आइए आज हम इसके उपयोग के बारे में चर्चा करते हैं।

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    मूली का सलाद बनाने और खाने की विधि :-

    मूली को काटकर सलाद के रूप में भोजन के मध्य में सेवन करने से पाचनशक्ति तेज होती है। ठंढ के समय यह स्वास्थ्य के लिए बड़ी उपयोगी होती है। इसे पत्ते सहित खाने से अधिक लाभप्रद मानी जाती है। घी
    के साथ इसकी तरकारी( सब्जी) बनाकर सेवन करने से अधिक
    लाभ पहुँचाती है। पेट के कृमियों( पेट के कीड़ों) को नष्ट करती है।
    खाली पेट मूली खाने से पेट में जलन हो सकती है। अतः
    भोजन के बीच मे मूली खाने की सलाह दी जाती है। मूली को अच्छी तरह से धो कर पतले- पतले सलाद बनाएं और उसमें थोड़ा सा काला नमक या सेंधा नमक मिलाकर सलाद के रूप में खाए। 

    मूली का (पथरी) यूरिनरी ब्लैडर स्टोन में प्रयोग :-

    मूली मूत्राशय की पथरी में अधिक उपयोगी है। मूली के पत्तों का रस 50 ग्राम लेकर उसमें 500 mg पिसा हुआ कलमी शोरा घोलकर सुबह-शाम खाली पेट लेना चाहिए। 3 ग्राम मूली के बीज पीसकर चूर्ण के रूप में 3 ग्राम अजवाइन के साथ दिन में तीन बार लेने से पथरी गल जाती है।

    पेशाब करने में दर्द और जलन (मूत्रकृच्छू) में मूली का प्रयोग:-

    मूली के पत्तों का रस निकालकर 50 ग्राम रस में 5 ग्राम सोडियम बाई कार्ब (खाने का सोडा) मिलाकर दिन में 3 बार देने से मूत्राघात, मूत्रकृच्छू एवं पेशाब की जलन मिटती है। पेशाब खुलकर होता है।

    बवासीर में मूली का प्रयोग:-

    मूली दोनों प्रकार के बवासीर में प्रभावकारी है। मूली के पत्तों का रस एक कप तथा उतनी ही मात्रा में मूली का रस निकालकर मिला लें, इसमें 3 ग्राम गोघृत मिलाकर खाली पेट पीने से लाभ
    होता है।

    अम्लता (एसिडिटी) में मूली का प्रयोग:-

    मूली और उसके पत्तों को पीसकर 50 ग्राम रस निकालकर मिसरी या शक्कर मिलाकर पीने से अम्लता दूर होती है।
    पेट की गैस (वायु विकार) में मूली का प्रयोग-मूली के रस में सेंधानमक और नीबू का रस स्वादानुसार मिलाकर पीने से वायु
    विकृति के कारण होने वाले उदरशूल (पेट दरद) में आराम मिलता है। मूली एवं मूली के पत्तों को साथ खाने से गैस मिटती है।

    दाद में मूली का उपयोग:-

    मूली के बीजों को पीसकर कपड़छन चूर्ण बनाकर, नीबू के रस में मिलाकर प्रतिदिन दाद पर लगाने  से दाद रोग दूर हो जाता है।

    बिच्छू के विष दूर करने में-

    मूली का सेवन पर्याप्त रूप से करने वालों को बिच्छू के विष का प्रभाव कम होता है। बिच्छू के दंश स्थल पर (त्वचा पर) मूली के
    टुकड़े पर नमक लगाकर रखने से पीड़ा शांत होती है।

    आवाज बैठने पर (स्वरभंग होनेपर) मूली का उपयोग :-

     मूली के बीजों को पीसकर 4 ग्राम चूर्ण गरम जल के साथ सेवन करने से स्वर साफ होने लगता है।

    ल्यूकोडर्मा में (सफेद दाग) मूली का उपयोग :-

    मूली के बीजों को अपामार्ग (ओंगा) क्षार के साथ पानी में पीसकर नित्यप्रति त्वचा पर लगाने से लाभ होता है।

    हिचकी में मूली का उपयोग-

    सूखी हुई मूली को पानी में पीसकर पानी के साथ उबालकर काढ़ा बनाकर नित्य सुबह-शाम सेवन कराने से श्वास और हिचकी में लाभ होता है। 

    सुजाक और प्रमेह में मूली के उपयोग :- 

    मूली के बीज 5 ग्राम लेने 
    से लाभ होता है।

    मासिक धर्म की रुकावट में मूली का उपयोग :--

    मूली के बीज 3 ग्राम लेकर पानी के साथ दिन में तीन बार सेवन करने से लाभ होता है।

    चेहरे की सुंदरता के लिए मूली का उपयोग :--

    चेहरे की त्वचा के निखार के लिए मूली के रस में चुटकी भर नमक मिलाकर चेहरे पर लेप करें। एक-दो घंटा बाद साफ पानी से चेहरे को धो लेना चाहिए। त्वचा चमकदार और कांतिमय होगी।

    अस्थमा में मूली क्षार का उपयोग :- 

    कच्ची मूली के छोटे-छोटे टुकड़े काटकर छाया में सुखा लें। सूखने पर इन्हें जलाकर भस्म बना लें। एक ग्राम भस्म की मात्रा गरम पानी के साथ सेवन कराने से लाभ होता है।

    कब्ज और अरुचि में मूली का प्रयोग-

    मूली का रस 50 ग्राम, 5 ग्राम नीबू का रस, 2 ग्राम अदरक का रस तथा चुटकीभर सेंधानमक मिलाकर पिलाने से अपच और कब्ज दूर होता है।

    पीलिया में मूली के उपयोग :-

    -ताजी मूली और मूली के पत्तों को अच्छी तरह नमक के पानी से धो लें, तत्पश्चात रस निकालकर प्रतिदिन 3 बार सेवन करने से पीलिया रोग दूर होता है। स्वाद के लिए मिसरी या चीनी भी
    मिला सकते है रक्त की कमी में मूली का प्रयोग-एक कप मूली का रस उसमें एक कप अनार का रस मिलाकर नियमित
    2 बार पीने से रक्त की कमी (एनीमिया) रोग दूर होता है।











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