हरड़ (हरीतकी) के फायदे और नुकसान
हरड़ छोटी होकर भी बड़ी गुणकारी है
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हरड़ (हरीतकी) के फायदे और नुकसान |
हर्ग को अनेकों नामो से जाना जाता है :
1. संस्कृत में हरीतकी
2. हिन्दी में हरड़
3. मराठी में हरड़े
4. अंग्रेजी में चेबुलिक मिरोबेलन
5. लैटिन में टर्मिलेलिया चेबुआ
6.मध्य प्रदेश के जन साधारण भाषा में हर्रा
7 उत्तर प्रदेश में जन साधारण भाषा में हर्र
8 इसकी मूल जाति हरीतिकी कुल
से इसका जन्म हुआ है।
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हरड़ का परिचय-
हरड़ की उत्पत्ति सम्पूर्ण भारत वर्ष में हर स्थान पर, हर प्रान्त में होती है. जो कि आसानी से उपलब्ध हो जाती है। इसके जो प्राचीन वृक्ष होंगे, वे लगभग 80 से 100 फिट की ऊँचाई वाले होते हैं। इसके पते 3 से 8 इंच तक लम्बे तथाचौड़ाई में 2 से 4 इंचे चौड़े होते हैं। इसके फलों का आकार 2 से 3 इंच तक होता है।
आयुर्वेद के प्राचीन ग्रंथों में हरड़ की सात प्रजातियां बतलाई गई हैं जो इस प्रकार हैं :
1.विजया, 2.रोहणी, 3.पूतना, 4 अमृता, 5.अभया, 6जीवन्ती, 7.चेतकी।
मोटे तौर पर हर्र तीन प्रकार की मानी जाती है
1.छोटी हरी- पीली और काली दो प्रकार की होती है।
2.बड़ी हर्र-पीली या काली दो प्रकार की होती है।
3बाल हर्र- बाल हर्र वह हर्र होती है जो कि आँधी या तूफान में वृक्ष से टूटकर जमीन पर गिर जाती है। इस हर्र के द्वारा व्यापारी लोग जनता को गुमराह करके अधिक धन कमाते हैं।
वास्तव में हर्र अमृता है अर्थात् अजर और अमर
है। आँधी और तूफान से भी जब जमीन पर गिर पड़ती है
तब भी अपने अमरत्व को बरकरार रखने में समर्थ है।
हरै की उत्पत्ति
हरं की उत्पत्ति प्रायः देवलोक में हुई मानी जाती है।
जिसके अनेको प्रमाण आयुर्वेद के प्राचीन ग्रंथों में मिल
सकते हैं जैसा कि भाव प्रकाश निघण्टु इसका साक्षी है।
यदि इसद को भली-भांति अध्ययन किया जाएगा,तो.
इस तथ्य की पुष्टि हो जायेगी।
देवादिदेव इन्द्र अर्थात् देवताओं के राजा भगवान
इन्द्र अमृत का पान कर रहे थे तो अचानक अमृत की
एक बूंद जमीन पर गिर जाने के कारण से सात प्रकार
की दिव्य हरीतकी की उत्पत्ति हुई। हरीतिकी-हरी
(अभया) जो कि अपने गुणों के कारण से भय से
राहेत हो, इसलिए इसका एक नाम अभया भी है।
कल्याणकारी होने के कारण एक नाम इसका पथ्या
भी है तथा पूतना आदि नाम से यह पवित्र करणी और
जो इसका एक नाम अमृता है उससे यह सिद्ध हो
जाता है कि जीवन प्रदान करने वाली है। एक नाम
इसका हेमवती भी है इसका जन्म हिमालय से भी माना
जाता है तथा अव्यथा के नाम से भी यह पुकारी जाती
है, क्योंकि इसमें व्यथा को समाप्त करने की शक्ति
उपस्थित है तथा इसका एक नाम चेतकी भी है क्योंकि
यह सभी प्रकार की चिन्ताओं को समाप्त करते हुए
चेतन्यता को प्रदान करती है तथा कहीं-कहीं शेयसी के
नाम से भी जाना जाता है जो कि श्रेष्ठ और कल्याण
करने वाली तथा विजया के नाम से भी यह विख्यात है
जो कि सभी रोगों में अपना अधिकार करने के पश्चात काया को निरोगी करे,तो वह विजया हरड कहलाती है इसे जीवंती
नाम से भी जाना जाता है। जीवन्ती का मतलब यह है कि जीवन प्रदान करने वाली हो ।अब उपरोक्त हर की पहचान इस प्रकार से की जायेगी।
1- जो कि देखने में गोली लौकी के समान हो - विजया
2 जो साधारण गोलाकार हो - रोहणी
3 - जिसकी गुठली बड़ी हो गूदा कम निकले - पूतना
4 जिसकी गुठली छोटी हो गूदा अधिक निकले - अमृता
5 -जिसमें मात्र पाँच धारिया उपस्थित हो - अभया
6 - जो सोने के समान स्वर्ण रंग की हो तो - जीवन्ती
7 -जिसमें मात्र तीन धारियाँ हो - चेतकी
तथा इसके रंग काले या पीली दोनों हो सकते हैं।
गुणकारी प्रभाव
(क)गुणों में लघुरुक्षता के प्रभाव से यह अग्निदीपक है।
(ख) रसों में कषाय होने से यह मोटापानाशक है।
(ग) उष्णता के कारण यह शक्तिवर्द्धक रसायन है।
(घ) विपाक में मधुरता के कारण यह तृषानाशक है।
(छ) पंचरस यानि प्रधान रस एवं उप रस के कारण से यह त्रिदोष दोष को दूर करने वाला है।
हर्रा के बारे में विस्तृत गुण- आयुर्वेद के प्राचीन विद्वानों ने हरी के गुणवत्ता का गुणगान बड़े ही अच्छे दंग
से किया है और यहाँ तक भी समझाया गया है कि माता कभी-कभी कुमाता बन सकती है, परन्तु खाई गई हरड कभी भी कुमाता नहीं हो सकती है। आयुर्वेद के प्रसिद्ध ग्रंथकारों का यह मानना है कि भगवान शिव के घर में उत्पन्न हुई है। इसलिए अमृत से भी बढ़कर है और पवित्रता में माँ गंगा से कम नहीं है। यह माँ गंगा के उदर से निकलने के कारण से हर जगह व्याप्त है। तथा यह त्रिदोषनाशक है।
यह कफ को शान्त करती है और पित्त को तत्काल अपने नियंत्रण में करती है जो कि वायुदोष को नीचे की ओर खुष्क मल को दूर करने में हमारे मित्र के समान हमारी रक्षा करती है। अगर खाली पेट हरं का सेवन किया जाए तो उदर के विकारों से राहत मिलेगी तथा शरीर को फुर्तीला बनायेगा और बुढ़ापा को करीब नहीं आने देगा। हर नेत्र विकार, खाँसी, बवासीर, चर्मरोग, अफरा, हिचकी,अपच, अश्वमरी, मूत्राघात, कृमि रोग एवं सड़न को रोकने में अपना अच्छा प्रभाव दिखलाती है।
आयुर्वेद में लाभ तभी सम्भव होगा जब कि उस दवा को उचित अनुपात में सेवन किया जाए।
चबा कर खाई गई है हरड अनिम्वर्धक है।
पीसकर खाई गई हरड रेचक (दस्तावर) होती है।
उबालकर सेवन की गई हरड दस्तों को बंद करती है
गोधृत में भूजकर सेवन की गई हरड त्रिदोष नाशक है।
एक वर्ष में ऋतुओं में अगर उचित अनुपात में हर्र का सेवन किया जाए तो आपको हरड के अमृतमय वरदान आपके सामने उपस्थित हो जाएंगे।
कफ को पतला करती है:-
सेंधा नमक के साथ सेवन करने से कफ को पतला करके निकालती है।
पित्त दोष समाप्त करती है :-
शहद के साथ सेवन करने से यह पित्तदोष को समाप्त करती है।
गैस को समाप्त करती है:-
घी के साथ इसका रोज उपयोग किया जाए तो वायुधिकारों को समाप्त करेगी।
हरे के दुष्परिणाम:-
नीबू के रस को सेवन कराने से दूर होंगे।
सावधान-
हर का प्रयोग करते समय निम्नलिखित सावधानी बरतना अनिवार्य होता है। सुग्राहियों को हरड का प्रयोग बिल्कुल नहीं करना चाहिए। कमजोर एवं वृद्ध तथा प्रामीण स्त्री एवं कमजोर व्यक्तियों को इसका प्रयोग और ज्वर की तीव्र दशा पर इसका प्रयोग नहीं करना चाहिए और पेचिश में दही के साथ सूजन मे सोंठ के साथ और बवासीर मैं मट्ठा के साथ और कब्ज को समाप्त करने के लिए गुणकारी है।
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