पीलिया( जौंडिस) का घरेलू इलाज

 

 पीलिया( जौंडिस) का घरेलू इलाज

पीलिया क्या है-

पीलिया  यकृत(Liver) के कोषाणु(cell) अक्रियाशील हो जाने की अवस्था का नाम है। पीलिया रोग रक्त की सीरम में पित्तवर्णक बिलीरुबिन की मात्रा बढ़ जाने के परिणामस्वरूप त्वचा, आँख का सफेद भाग तया श्लेमिक शिल्ती (Mucous Membrane) के पीले रंग की हो जाने को कहते है। इस अवस्था को वायरल हिपेटाइटिस या पीलिया कहते है।

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    पीलिया के प्रकार-

    पितवर्णक बिलीरूबीन मृत R.B.C. (लाल रक्तकण) के
    हिमोग्लोबीन के अपघटन से यकृत कोशाओं द्वारा बनाया जाता है और रक्त से हटाकर पित्तरस में डाल दिया जाता है। पित्तरस के साथ यह आँत में चला जाता है।और मल के साथ बाहर
    आ जाता है। कभी-कभी वायरस के प्रभाव से रक्त के लाल रक्तकण अत्यधिक मात्रा में टूट जाते हैं। इस अवस्था को हिमोलाइटिक हिपेटाइटिस कहते है।
    2. यकृत कोशिकाओं द्वारा निकला एक विशिष्ट द्रव बाइल (पित्तरस) के बहाव में कोई अवरोध उत्पन्न होने पर बाइल पाचन संस्थान में पहुंचने के स्थान पर रक्त में ही पहुंच जाता
    है, जिससे पीलिया होने के लक्षण प्रारंभ हो जाते हैं, इस प्रकार ओवस्ट्रक्टिव हिपेटाइटिस कहते है।
    3. इसमें यकृत के कोषाणु (cell)वायरस के संक्रमण एवं विषैली दवाओ के प्रभाव से अक्रियाशील हो जाते है, जिससे पीलिया हो जाता है। अधिकतर लोगों में इसी प्रकार का पीलिया
    होता है। इसे हिपेटोसेल्यूलर हिपेटाइटिस कहते हैं।

    पीलिया के भोज्य तत्त्वों की जावश्यकता-

    विटामिन-यकृत के रोगों में जीवनसत्व(vitamin) बी' तथा 'सी' की अधिक मात्रा सहायक होती है। बेहोशी, भूख न लगना, जी मिचलाना
    तथा वमन इत्यादि लक्षणों के दौरान जीवनसत्व(vitamins) इंजेक्शन द्वारा रक्त में पहुंचाने चाहिए।

    प्रोटीन-

    तीव्र अवस्था में यकृत में प्रोटीन का चपाचपय (metabolism)पूर्ण रूप से न होने के परिणामस्वरूप कोमा या बेहोशी जैसी स्थिति उत्पन्न हो जाती है। यकृत में कोषाणु(cell) के निर्माण हेतु प्रोटीन पर्याप्त मात्रा में आवश्यक रहती है।
    पीलिया की तीव्रतम अवस्था में जिसमें रक्त के सीरम में बिलीरूबीन की मात्रा 15 मिलीग्राम प्रति 100 मिलीलीटर सीरम हो चुकी होने पर केवल 40 ग्राम तक प्रोटीन ही यकृत
    के कोपाणु निर्माण(cell formation )के उद्देश्य से आवश्यक है। प्रोटीन की अधिक मात्रा बेहोशी की अवस्था को पुनः निर्माण कर सकती है। रक्त की बिलीरूबीन बाइल की मात्रा कम हो जाने पर प्रोटीन की मात्रा 60-80 ग्राम प्रतिदिन बढ़ायी जा सकती है।

    वसा-

    पीलिया की तीव्र अवस्था में 50 ग्राम वसा प्रतिदिन तथा अवस्था में सुधार होने पर 50-60 ग्राम वसा प्रतिदिन दी जा सकती है। वसा की इस मात्रा से कुछ कैलोरीज की मात्रा में वृद्धि होगी तथा भोजन स्वाद एवं रूचि से खा लिया जाना सम्भव होगा।

    कैलोरीज़-

    तीव्र अवस्था में पीलिया के रोगी को 1000 से 2000 तक कैलोरीज़ वयस्क अवस्था में उपयोगी है।
    -अतिरिक्त कैलोरीज़ की पूर्ति हेतु कार्बोहाइड्रेट की अधिक मात्रा आवश्यक रहती है, तीव्र अवस्था में ग्लूकोज शिरा (Intravenoun) में सेलाईन के रूप में दिया जाना
    चाहिए।

    खनिज पदार्थ-

    भोज्य पदार्थों के स्थान पर सेलाईन के द्वारा भोज्य तत्व जब शरीर में पहुँचाये जाते हैं, तब सीरम की सोडियम तथा पोटेशियम की मात्रा के संतुलन पर ध्यान रखना चाहिए।

    पीलिया का आहार से उपचार-

    पीलिया रोग का उपचार आहार सम्बंधी व्यक्तिगत
    नियंत्रण पर रहता है। उचित आहार, साधारण आराम तथा जीवनसत्वों (vitamins) की उचित मात्रा से इसमें प्रभावशाली परिवर्तन होते हैं, आहार संबंधी थोड़ी-सी असावधानी से इसमें तीव्रता आ
    सकती है, जिसके दौरान सेलाईन द्वारा विशेष उपचार शीघ्र करना पड़ता है।
    पीलिया में मुह द्वारा भोजन करना कई बार असम्भव हो सकता है, उस समय ट्यूब द्वारा या सेलाईन के द्वारा शरीर में भोज्य तत्व पहुंचाना पड़ता है। ट्यूब द्वारा (Intravenous
    Feeding) दस प्रतिशत ग्लूकोज़ 30 यूँद प्रति मिनट के हिसाब से 2000 से 2500 मिलीलीटर
    द्रव दिया जाय, जिससे प्रतिदिन 800 से 1000 कैलोरीज प्राप्त होती है। जितना शीघ्र हो सके व्यक्ति को मुंह द्वारा भोजन देना चाहिए।

    पीलिया की चिकित्सा- 

    1. लिवोमीन टेबलेट/सीरप (चरक फार्मा.)-़व्यस्को को 2 से 3 गोलियों दिन में प्रयोग करायें।

    2-3 बार या 2-3 छोटा चम्मच दिन में 2-3 बार, आवश्यकतानुसार चार सप्ताह तक लेवे।

    3 . Liv 52 ds /liv 52/tablets and syp.

     हिमालय कंपनी की लीवर से संबंधित सभी प्रकार के कंपलीमेंट्स के लिए उपयुक्त औषधीय एक गोली सुबह शाम या 1 टेबलस्पून सिरप पानी के साथ सुबह शाम ले इससे लीवर से संबंधित सभी बीमारी में लाभ मिलता है पीलिया में भी यह गुणकारी है।

    4. लिवोजेन सीरप/इंजेक्शन (एलेनवरीज)-2 चम्मच जल के साथ दिन में 2 बार पिलाये या 1 से 2 एम एल. का इंजेक्शन गहरे मांस में आवश्यकतानुसार लगायें।

    5 . डेक्सोरेंज सिरप एनीमिया की स्थिति में दिया जा सकता है।

    6.  Autrin (सायनेमिड)-विटामिन के लिए एक कैप्सूल दिन में 1 बार दे।

    भारत जैसे गरीब देश में सुलभ और प्रभावी औषधीय प्रयोग करें :-

     1-कुटकी का महीन चूर्ण 250 मिलीग्राम दो बार मधु से दे।

     2 -आंवले का रस दो बार 50 50ml मधु के साथ दे। 

    3 -पुनर्नवा का रस 50ml दो बार दें 

     4 -पुनर्नवा मंडूर 2 तोला दो बार मधु से दें 

    5 -कुमारी आसव एक तोला पुनर्नवारिष्ट एक तोला दो बार भोजन के बाद जल मिला कर दें 

    6 -कुमारी आसव बालकों को दो चम्मच तक जल मिलाकर दो बार दें 

     7- गन्ने का रस एक गिलास दो बार पिलाएं यदि यह ना मिले तो कागजी नींबू का रस और चीनी का शरबत एक एक गिलास दो बार दें ।इससे पीलिया रोग में राहत मिलती है।



    पीलिया में आराम का महत्व-

    पीलिया के रोगी को उपचार के दौरान प्रतिदिन के
    आराम पर ध्यान देना होगा। पूर्ण समय बिस्तरंरथ पर रहना वास्तविक रूप से संभव नहीं हो पाता, अतः व्यावहारिक रूप में व्यक्ति को आराम करने को कहा जाता है। विश्राम की अवस्था
    तब तक महत्त्व रखती है, जब तक सीरम की बिलीरुबिन की मात्रा 1-5 मिलीग्राम प्रति 100 m.l.न हो जाए।

    ध्यान देने योग्य बातें-

    पीलिया के मरीजों को फलदार सब्जी ताजे मोटे फल (अगूंर
    सेब, संतरा, मोसंम्बी, पपीता, आम आदि) हरी पतियों का साग, वनस्पति शाक भाजी, , बिना पॉलिश किया चावल, नारियल चना, मूंग, अरहर की दाल, सेम, बंद गोभी परवल तुरई लौकी जैसे हल्के जल्दी पचने वाले भोजन दे। और दूध गन्ने का रस ग्लूकोज या इलेक्ट्रेल पाउडर पीने को दें।


    बर्जित-अपथ्य 

    रोगी को तीक्ष्ण बस्तुरे मिर्च मसाले, तेल, यी, नमक, गरिष्ट भोजन, वसा वाले भोजन न दे। पीलिया के रोगी को अति मैथुन, और मदिरापान से दूर रहना चाहिए।

    तेल डालडा ,नमक ,लाल मिर्च, गरम मसाला, दिन में सोना, रात में जागना, मैथुन करना ,धूप सेवन करना , परिश्रम करना अपथ्य हैं ।

    सबसे सस्ता मिलने वाला फल आंवला  के पांच फलों का रोज सेवन किया जाए तो वात पित्त कफ वाले रोग दूर हो जाते हैं। शरीर के पुराने रक्त साफ हो जाते हैं और नए रक्त का संचार होने लगता है । प्रतिदिन आंवला का सेवन करने वाले व्यक्ति के शरीर में से झुर्रियां गायब हो जाती हैं। बालों का पकना, कम दिखाना और धातु की क्षीणता जैसे रोग नष्ट हो जाते हैं ।चेहरा लाल कश्मीरी सेब के जैसा चमकीला हो जाता है ।आंवला एक रासायनिक द्रव्य है, जिसके सेवन करने से दीर्घ जीवन की प्राप्ति होती है। इसे वयस्थापक कहते हैं । इसलिए समय पर इसका उपयोग करना चाहिए।

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